साइबर क्राइम– भाग एक
आर० के ० लाल
यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के पश्चात समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं। किसी ने सलाह दिया कि मैं एम० सी० ए० कर लूं। मगर उसमें बहुत पैसा लगता था। फीस देने के लिए मेरे घर में पैसा नहीं था। पिताजी के पास केवल एक बीघा खेत था जिसके सहारे वे हम सब लोगों का लालन-पालन कर रहे थे। इसलिए मैं उनसे नहीं कह सकता था। मैंने अपने मौसा जी से उधार मांगें तो उन्होंने तीन लाख की जगह चार लाख वापस देने की शर्त पर पैसे दे दिये । मेरा एडमिशन शहर के एक अच्छे कॉलेज में हो गया और परीक्षा पास कर ली। मगर एम० सी० ए० करने के बाद फिर नयी समस्या आ गई। कहीं कोई नौकरी नहीं मिल रही थी, कैंपस इंटरव्यू में भी चयन नहीं हुआ । मैं दर-दर भटकने लगा था, पिताजी कभी-कभार पैसे भेज देते थे जिसे मैं एक बैंक में जमा करा देता था । जब जरूरत होती तो ए० टी० एम० जाकर निकाल लेता था। एक दिन जब मैंने ए० टी० एम० से पैसे निकाले और घर जाने लगा तो मुझे अपने मोबाइल पर एस० एम० एस० आने की ट्यून सुनाई पड़ी। घर पहुंचा तो एक और एस० एम० एस० की ट्यून आई। मैंने मोबाइल ऑन किया। मैसेज पढ़कर तो मेरे पैरों के तले की जमीन निकल गई। मेरे खाते से दो ट्रांजैक्शन दस दस हज़ार रुपये के हो गए थे। मेरा ए० टी० एम० कार्ड मेरी जेब में ही था। मुझे समझ में नहीं आया यह कैसे हो गया। मैं भागकर उसी ए० टी० एम० बूथ पर गया, लेकिन वहां मुझे कुछ हासिल नहीं हुआ। मैंने बैंक को फोन मिलाया। बैंक ने सभी डिटेल नोट कर लिए। मेरा ए० टी० एम० कार्ड भी डीएक्टिवेट कर दिया। बहुत दिनों तक मैं उस बैंक के चक्कर लगाता रहा मगर बैंक वालों ने कोई भी मदद करने से इंकार कर दिया। कहा कि बकायदा सही पासवर्ड डालकर पैसे निकाले गए हैं। किसी ने बताया कि अपराधी ए० टी० एम० मशीन के उपर एक कैमरा युक्त डिवाइस लगा कर सब पता कर लेते हैं अथवा कार्ड की क्लोनिंग कर लेते हैं।
अब मेरा ए० टी० एम० से भरोसा उठ चुका था। मेरे एक दोस्त ने बताया कि तुम पे० टी० एम० का प्रयोग करो। उसके वालेट में थोड़ा ही पैसा रखो। यह बात मेरी समझ में आ गई थी इसलिए मैं अब पे० टी० एम० यूज़ करने लगा था। एक दिन मेरे पास एक एस० एम० एस० आया। लिखा था p#yt॰m यूअर केवाईसी हैज बीन एक्सपायर्ड , कांटैक्ट ऑन गिवेन नंबर । मैंने उसकी कोई नोटिस नहीं ली तो कॉल करके एक महिला ने मुझसे कहा कि मैं पे० टी० एम० ऑफिस से बोल रही हूं, आपका के वाई सी अभी तक पूरा नहीं है इसलिए आपका पेटीएम अकाउंट बंद कर दिया जाएगा। अगर आप इसे चालू रखना चाहते हैं अभी के वाई सी अभी पूरी कर लीजिए।
उसने बताया कि के वाई सी के लिए अब कोई व्यक्ति आपके घर नहीं जाएगा बल्कि आप को यह कार्य खुद ऑनलाइन करना पड़ेगा। उसने मुझे तरीके बताने शुरू कर दिए और कुछ ऐसी बातें भी बतायीं जिससे मुझे उस पर पूरा विश्वास हो गया। उस लड़की ने मुझे अपनी प्यारी और मीठी बातों में उलझा लिया था। मेरे कुछ पूछने पर उसने कहा, मैं आपको तरीका बताती जाती हूं, आप अपने मोबाइल में दिया गया फॉर्म भरते जाइए। साथ ही कह रही थी कि आप मुझे अपनी कोई ओटीपी आदि मत बताइए। मैं आश्वस्त था। तभी मेरे मोबाइल पर बैंक से ट्रांजैक्शन की सूचना आने लगी। धीरे-धीरे करके मेरा पूरा अकाउंट खाली हो चुका था। मैंने एफ० आई० आर० भी दर्ज कराया। बाद में मेरी समझ में आया कि मेरे साथ स्मिशिंग की गयी है। ऑनलाइन सुरक्षा की दुनिया में स्मिशिंग एक उभरता हुआ और बढ़ता हुआ खतरा है, जिसमें कोई व्यक्ति फ़ोन कॉल या एसएमएस संदेश के माध्यम से आपकी निजी जानकारी ले लेता है।
मैं बहुत निराश हो गया था। एक तो नौकरी नहीं लग रही थी दूसरे सारा पैसा भी लुट चुका था । मैं किसी को बता नहीं सकता था कि स्वयं कम्पुटर का एक विशेषज्ञ होकर भी मैं साइबर क्राइम का शिकार हो गया हूँ। मुझे पता नहीं था कि आजकल वाइस पिशिंग के जरिए कॉल किया जाता है और आपको आपके बैंक अकाउंट, पेटीएम अकाउंट में केवाईसी न होने अथवा उससे मिलने वाले कैशबैक न मिलने के बारे में कहा जाता है। लोगो को विश्वास में लेने के लिए तमाम सही स्टेटस और नियमों की बात की जाती है। कभी कभी लॉटरी सहित कई लालच दिए जाते हैं। इसके बाद उनसे टीम व्यूअर आदि जैसे ऐप्प डाउनलोड करने को कहा जाता है और लोगो से स्वयं सारे डिटेल्स भरवाये जाते हैं। वे कहते रहते हैं कि हमें कुछ मत बताइये ओ टी पी भी नहीं। सब खुद भरिए। लोग उन पर विश्वास कर लेते हैं । चूंकि टीम व्यूअर के द्वारा वे आपके मोबाइल से जुड़ गए हैं इसलिए वे सब देख सकते है, ओटीपी अथवा सीवीवी नंबर भी । वे तुरंत लोगों का अकाउंट खाली कर देते हैं।
एक दिन मैं ऑनलाइन अपनी मार्क शीट निकाल रहा था। तभी मेरे पास एक ई - मेल आया कि यदि आपको नौकरी चाहिए तो फौरन अपना सी० वी० भेजो। तुरंत फोन भी आया कि नौकरी के लिये प्रोसेसिंग फीस दो हज़ार देना पड़ेगा। अगर ज्वाइनिंग हो गयी तो मुझे एक महीने की तनख्वाह देनी होगी। मुझे पता चल चुका था कि मेरा डेटा हैक हो चुका था। मार्क शीट निकालते समय उस प्रोग्रामर ने अपने बनाए एप्प को सरकुलेट करते हुये एक डाऊनलोड स्क्रीन मेरे तक पहुंचाया होगा। यह सब जानते हुये भी मैं नौकरी के लिए उस पते पर पहुँच गया। वह ऑफिस एक साइबर कैफे जैसा था। मैंने सोचा भी न था कि मुझे इतनी छोटी जगह नौकरी मिलेगी। मेरा मन तो नहीं हो रहा था परंतु नल्ले रहने से तो अच्छा था कि कुछ किया ही जाए। वहाँ काम कर रहे एक लड़के ने बताया कि देखने में तो यह बहुत छोटी नौकरी है मगर मालिक काम के हिसाब से पैसे देता है जो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में मिलने वाली तनख्वाह से कम नहीं होती। सैलरी के नाम पर भले ही धनराशि कम मिलती हो मगर ओवरटाइम बहुत ज्यादा मिलता है। वहां पर कई कंपनियों की एजेंसी भी है इसलिए उनके लिए क्लाइंट बनाने पर भी अलग से कमीशन मिलता है। मैंने सोचा कि जब तक कोई नौकरी नहीं मिलती तब तक इसको ही ज्वाइन कर लेता हूं। मेरा इंटरव्यू अच्छा हुआ ,मेरी अंग्रेजी बोलने के असेंट से भी वे लोग प्रभावित हो गए थे। मेरा चयन हो गया। मुझे तीन महीने की ट्रानिंग पर रख लिया गया था। कोई अपोइण्ट्मेंट लेटर नहीं दिया गया, मेरी ओरिजिनल सर्टिफिकेट भी जमा करा लिया गया।
कंप्यूटर संबंधी कार्य ही मुझे करना था। ऑफिस एक बहुमंजिला इमारत में था। वहां का नक्शा एक काल सेंटर की तरह था, जिसमें बीस - पच्चीस लोगों के काम करने की व्यवस्था थी। मुझे सबसे ऊपर वाले मंजिल पर जगह दी गई, जहां सभी लोग नहीं जा सकते थे। कुछ खास लोग ही वहां पर रखे जाते थे। मुझे लगा मुझे बहुत इंपॉर्टेंस दी जा रही है। मुझे कुछ दिन तक एक सीनियर मैनेजर से अपना काम समझना था। इसलिए मुझे अगले दिन उनके केबिन में जाकर उनसे मिलना था।
क्रमशः